शाहजहाँ : एक कहानी

शाहजहाँ मुग़ल साम्राज्य के पाँचवे शहंशाह थे। यह साल 1628 से 1658 तक मुग़ल सल्तनत के बादशाह रहे। शाहजहाँ को उनकी न्ययाप्रियता और वैभव-विलास के लिए जाना जाता है। शाहजहाँ ने दुनिया को प्यार की निशानी दी। दुनिया उन्हें एक प्यार के एक बादशाह के रूप में याद करती है। शाहजहाँ ने अपनी बेगम मुमताज़ महल की याद को ज़िंदा रखने के लिए दुनिया की सबसे ख़ूबसूरत इमारत ताजमहल का निर्माण करवाया। लेकिन, इस बादशाह की जिन्दगी के आखि़री दिन कैसे गुज़रे इसका अंदाज़ा कम ही लोगों को है। 

यह साल 1657 की बात है। शाहजहाँ अब बूढे़ हो गये थें। उनका शरीर कमजोर हो गया था। वे अपने पुत्र दारा शिकोह को गददी पर बैठाना चाहते थे। शाहजहाँ के दूसरे पुत्र औरंगजेब को यह बात अच्छी नहीं लगती थी। लेकिन एक बादशाह तो बादशाह होता है। उसी की मर्जी चलती है। उसने वही किया जो उचित समझा और उसने अपने पुत्र दारा शिकोह का सल्तनत का उत्तराधिकारी बना दिया। यह बात औरंगजेब को बिल्कुल पसंद नहीं आयी। फिर उसने वहीं किया जो एक नासमझ आदमी करता है। उसने अपने बूढ़े और शक्तिहीन पिता को कैद कर आगरे के किले में बंदी बना लिया। शाहजहाँ को तमाम मुश्किलों का समाना करना पड़ा। यहां उन्हें उनकी सबसे बड़ी संतान जहाँआरा के साथ रखा गया। यह इतिहास में एक नालायक बेटे की सत्ता की लालच के सबसे बड़े नमूने के रूप में दर्ज है। यह घटना एक बादशाह के घुट-घुट कर मरने की एक अवसादपूर्ण कहानी है।


इस घटनाक्रम पर साल 1902 में अवनीन्द्रनाथ टैगोर ने एक मिनिएचर पेंटिंग बनाई। इस पेन्टिंग का नाम ’द पासिंग ऑफ़ शाहजहाँ’ है। इसमें इस मुग़ल बादशाह के आखि़री दिनों की ज़िन्दगी की हालात का सजीव चित्रण किया है। इस पेंटिंग में शाहजहां का कमरा तक़रीबन ख़ाली है। मृत्यु के क़रीब बादशाह अपने बिस्तर पर लेटा हुआ है। वह हसरत भरी निगाहों से अपनी बरसों पहले दिवंगत हो चुकी पत्नी मुमताज महल की याद में बनवाई गयी निशानी ताजमहल की ओर देख रहा है। जिसे बनवाने में उसने अपनी ज़िन्दगी का एक बड़ा हिस्सा खर्च किया था। बादशाह के पैरों के नज़दीक राजकुमारी जहाँआरा बेगम उदास बैठी है। उनके बदन पर कपड़े बेहद साधारण हैं। इन्होंने कोई शाही आभूषण नहीं पहन रखा है। इन दोनों लोगों की सेवा करने के लिए कोई नौकर भी नहीं है।


यह रात का दृश्य है। हरे रंग के आसमान पर गहरे छाये बादल और आधा ढका चन्द्रमा कमरे की उदासी और बादशाह के जीवन के खालीपन को बता रहा है। यमुना नदी के तट पर बना ताजमहल इस पेन्टिंग का एकमात्र चमकीला हिस्सा है। अपने ही बेटे द्वारा लाचार बना दिये गये बादशाह के उजाड़ हो चुकी ज़िन्दगी के रेगिस्तान के उपर यह ताजमहल किसी सितारे की तरह झिलमिला रहा है। इस इमारत को अभी दुनिया भर के लिए आशा और प्यार की निशानी बनना अभी बाक़ी है। 
मुगलकाल की पेन्टिंगस में अकसर भावनायें व्यक्त नहीं होतीं। लेकिन, इस पेन्टिंग को देखते हुआ आप बादशाह की मनोदशा का अंदाजा ही नहीं लगायें बल्कि उसमें डूब जायेंगे। इस हिसाब से देखे तो यह एक अति उत्कृष्ट चित्र है। इस पेंटिंग को देर तक देखने पर हम घोर अवसाद, त्रासदी, करूणा, प्रेम, शोक, दुख, प्रसन्नता और आनन्द जैसे भावों से एक साथ भर जाते हैं।

 

-मनीष पटेल