किताबें  - सफ़दर हाशमी

किताबें कुछ कहना चाहती हैं,
तुम्हारे पास रहना चाहती हैं !

किताबें करती हैं बातें
बीते ज़मानों की
दुनिया की, इंसानों की
आज की, कल की
एक-एक, पल की।

ख़ुशियों की, ग़मों की
फूलों की, बमों की
जीत की, हार की
प्यार की, मार की।

क्या तुम
नहीं सुनोगे 
इन किताबों की बातें ?

किताबें, कुछ कहना चाहती हैं,
तुम्हारे पास रहना चाहती हैं।

किताबों में चिड़ियाँ चहचहाती हैं,
किताबों में खेतियाँ लहलहाती हैं। 

किताबों में झरने गुनगुनाते हैं,
परियों के क़िस्से सुनाते हैं।

किताबों में रॉकेट का राज़ है,
किताबों में साइंस की आवाज़ है। 

किताबों का कितना बड़ा संसार है,
किताबों में ज्ञान का भण्डार है। 

क्या तुम इस संसार में नहीं जाना चाहोगे?

किताबें कुछ कहना चाहती हैं,
तुम्हारे पास रहना चाहती हैं !

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सफ़दर हाशमी एक मार्क्सवादी नाटककार, कलाकार, निर्देशक, गीतकार और कलाविद थे। हाशमी को नुक्कड़ नाटक के साथ उनके जुड़ाव के लिए जाना जाता है। भारत के राजनीतिक रंगमंच पर आज भी वे एक महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। सफ़दर जन नाट्य मंच और दिल्ली में स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ़ इंडिया के संस्थापक सदस्य थे।