
साँप ने सोचा
एक दिन एक साँप घूमने निकला। साँप के सामने से एक लड़की आ रही थी। साँप ने सोचा कि, मेरे पास ज़हर है। लेकिन, इस लड़की को काटूँ या न काटूँ ! फिर, साँप ने देखा कि, लड़की मेरी तरफ़ आ रही है। तब उसने सोचा कि, अब तो इसे काटना ही पड़ेगा।
साँप ने फिर सोचा। लेकिन, जब मैं इसे काटूँगा तब वह चिल्ला पड़ेगी। चिल्लाने के आवाज़ सुनकर लोग दौड़कर आ जायेंगे। मेरी जमकर पिटाई कर देंगे। इससे अच्छा मुझे ही रास्ता छोड़कर खिसक लेना चाहिए। और, साँप ने अपना रास्ता बदल लिया।
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नोट : यह कहानी एक सातवीं कक्षा के बच्चे 'विप्लव' ने लिखी है। यह कहानी बच्चों की पत्रिका 'चकमक' के जनवरी 1991 के अंक में छपी थी।
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मैंने अपनी सुविधानुसार कुछ शब्द इधर-उधर किया है। लेकिन, कहानी की मूल भावना के साथ कोई छेड़-छाड़ नहीं की गयी है। जिसके लिए मूल लेखक से माफ़ी। - मनीष पटेल